History of BHEL

बीएचईएल का इतिहास

भारत के अपने भारी विद्युत उपस्कर उद्योग का आरंभ

1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए बुनियादी ढांचे और पूंजीगत वस्तुओं में एक मजबूत आधार प्रदान करना था। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार ने महसूस किया कि सतत आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा विनिर्माण आधार और पर्याप्त तकनीकी रूप से योग्य कार्मिक होना चाहिए।.

Image of Dawn of India’s very own heavy electrical equipment industry

देश के योजनाकारों ने पहचाना कि लंबी अवधि के औद्योगिक विकास के लिए विद्युत शक्ति की पर्याप्त आपूर्ति पहली अनिवार्यता थी।इसे केवल एक मजबूत घरेलू विद्युत उपस्कर उद्योग द्वारा ही बनाए रखा जा सकता था।तदनुसार, योजना आयोग ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए आवश्यक सभी प्रकार के भारी विद्युत उपस्करों के निर्माण के लिए कारखाने की स्थापना हेतु कदम उठाने की सिफारिश की।

परीणामस्वरूप, भारत सरकार ने भारत में भारी विद्युत उपस्करों के निर्माण के लिए भोपाल में एक कारखाने की स्थापना के लिए एसोसिएटेड इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज (एईआई), ब्रिटेन के साथ 17 नवंबर, 1955 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।कंपनी को 29 अगस्त, 1956 को उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र में हेवी इलेक्ट्रिकल्स (इंडिया) लिमिटेड (एचई (आई) एल) के रूप में पंजीकृत किया गया था।

सदी के अंत तक 1,00,000 मेगावाट तक बिजली उत्पादन के लिए देश में स्थापित क्षमता को बढ़ावा देने के संकल्प के साथ, भारत सरकार द्वारा तैयार की जा रही पाँच-वर्षीय योजनाओं में बिजली उत्पादन क्षमता की मांग में पर्याप्त वृद्धि की उम्मीद थी।तदनुसार सरकार ने भारी विद्युत उपस्करों के निर्माण के लिए तीन और करखानों की स्थापना के लिए निर्णय लिया था।

तब ... बीएचईएल बना

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पहला संयंत्रतिरुचिराप्पल्ली (तमिलनाडु) में उच्च दबाव बॉयलर के लिए, दूसरा संयंत्र स्टीम टर्बो जनरेटर और उच्च दबाव पंप और कंप्रेसर के लिए हैदराबाद (तेलंगाना)मेंदोनों चेकोस्लोवाकिया की सहभागिता से और तीसरा संयंत्र बड़े भाप टर्बो जनरेटिंग सेट और मोटर्स एवं टर्बाइन तथा जेनरेटर सहित हाइड्रो जनरेटिंग सेट के लिए यूएसएसआर सहभागिता के साथहरिद्वार (उत्तराखंड) में स्थापित किया गया।ये तीन नई परियोजनाएं हेवी इलेक्ट्रिकल्स (इंडिया) लिमिटेड का हिस्सा थीं, जिनके लिए भोपाल में काम शुरू किया गया था।सभी प्रारंभिक कार्य भोपाल से नवंबर 1964 तक किए गए।

सरकार ने इन तीन इकाइयों की स्थापना और प्रबंधन के लिए एक अलग निगम बनाने का फैसला किया।इस प्रकार, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड अस्तित्व में आया और औपचारिक रूप से 13 नवंबर, 1964 को निगमित किया गया।

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भोपाल संयंत्र,जो बिजली बोर्डों से प्राप्त आदेशों के लिए थर्मल और हाइड्रो जनरेटर संयंत्रों का निर्माण कर रहा था,के साथ-साथइन तीन नए सयंत्रो ने दशक के उत्तरार्ध में उत्पादन जनरेशन उपस्करों पर फोकस कर उत्पादन शुरू कर दिया। बीएचईएल के अधीन सयंत्रों ने तेजी से प्रगति भी की।हालांकि, उत्पाद प्रोफ़ाइल और दो निगमों की प्रौद्योगिकियों में पूरकता के साथ-साथ काफी ओवरलैप भी था।

उत्पाद प्रोफ़ाइल के तर्कसंगतता, डिजाइनों और इंजीनियरिंग कार्यों के मानकीकरण की तत्काल आवश्यकता थी।महसूस किया गया कि निगमों के एकीकरण से ये साथ मिलकर काम करेंगे और संसाधनों का इष्टतम उपयोग होगा। इन कम्पनियों को मिलाकर एक कंपनी बना देने से यह बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने में भी सक्षम होगी।उचित विचार-विमर्श के बाद, 1972 में भारत सरकार ने दोनों निगमों को मिलाकर एक करने और वास्तव में आधुनिक वैश्विक उद्यम बनाने का फैसला किया। तदनुसार, एचई(आई)एल और बीएचईएल का औपचारिक रूप से जनवरी 1974 में विलय हुआ।

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सत्तर का दशक: रणनीतिक योजना और प्रबंधन का युग

विलय की गई कंपनी, बीएचईएल ने 30 मेगावाट से 210 मेगावॉट तक के थर्मल जनरेटिंग सेट, विभिन्न रेटिंग के हाईड्रो उत्पादन संयंत्रों और 400 केवी रेटिंग तक ट्रांसमिशन उत्पादों के निर्माण के लिए व्यवस्थित रूप से अपनी सुविधाओं को अपग्रेड किया।संगठन ने स्वं को उत्पादन / संचालन प्रबंधन चरण से रणनीतिक योजना और प्रबंधन चरण में बदलना शुरू कर दिया।बीएचईएल 45,000 अत्यधिक प्रशिक्षित और व्यापक रूप से अनुभवी अपने तकनीशियनों और इंजीनियरों की टीम के साथ, वर्ष 1973-74 तक 230 करोड़ रुपए के कारोबार स्तर तक पहुंच गया।कंपनी ने सत्तर के दशक के मध्य में चौथी योजना के अंत तक 4,579 मेगावाट की भारत की क्षमता के लिए 910 मेगावॉट विद्युत उत्पादन उपस्करों का योगदान दिया।बीएचईएल ने बदलती घरेलू आवश्यकताओं और निर्यात के अनुरूप बनने के लिए वैश्विक लीडरों के सहयोग से अपने उत्पादों को अपग्रेड किया।इस अवधि में बीएचईएल ने मलेशिया के लिए पहले निर्यात आदेश के निष्पादन के साथ अपनी विदेश यात्रा भी शुरू की।

Image1 of Seventies: Era of Strategic Planning and Management

प्रारंभिक वर्षों में भी, बीएचईएल को एहसास हो गया था कि भविष्य में व्यावसायिक विकास केवल सिस्टम एकीकरण और सेवा क्षमता विकसित करके ग्राहक को संपूर्ण सेवा प्रदान करने से ही हो सकता है।दोनों निगमों के सफल एकीकरण ने भविष्य की चुनौतियों को पूरा करने के लिए एक मजबूत इंजीनियरिंग उद्यम बनाया।प्रौद्योगिकी और बाजार में बदलावों को पूरा करने के लिए घरेलू दूरदर्शिता और दीर्घकालिक योजना क्षमता का निर्माण उतना ही महत्वपूर्ण था। पणधारकों के साथ गहन परामर्श और वैश्विक लीडर्स के साथ बेंचमार्किंग के बाद, कंपनी मार्च 1974 में कॉर्पोरेट योजना लाई।

यह बीएचईएल के इतिहास में एक बड़ा कदम था और तेजी से वृद्धि और विकास के लिए संगठन को जस्ती बनाया गया।इसने वास्तव में वैश्विक उद्यम बनाने की नींव रखी और यह भारत के कॉर्पोरेट इतिहास में एक लैंडमार्क था।

जैसी कॉरपोरेट प्लान में "प्रोडक्शन ओरिएंटेशन" से "इंजीनियरिंग, विकास एवं मार्केट ओरिएंटेशन" में परिवर्तन की परिकल्पना की गई थी,कार्यात्मक अभिविन्यास, तर्कसंगतता और उत्पादों के मानकीकरण की रणनीतिक पहलें, बुनियादी आर एंड डी के विकास, वर्टिकल एकीकरण, प्रणाली बिक्री, अधिग्रहण के माध्यम से व्यापार विस्तार, निर्यात पर जोर देना और अन्यों के साथ ग्राहक सेवा क्षमता को मजबूत करने के लिए लागू किया गया।

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योजना के मुताबिक, दूसरी पीढ़ी की विनिर्माण इकाइयों को झांसी में ट्रांसफॉर्मर फैक्ट्री, हरिद्वार में केंद्रीय फाउंड्री फोर्ज प्लांट और तिरुचिराप्पल्ली में सीमलेस स्टील ट्यूब प्लांट के रूप में स्थापित किया गया ताकि विस्तार और वर्टिकल एकीकरण के उद्देश्य को पूरा किया जा सके। रेडियो और इलेक्ट्रिकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (रेमको) के अधिग्रहण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स डिवीजन के रूप में नए नामकरण के साथ 70 के दशक में और अधिक विविधता हासिल की गई थी ताकि इलेक्ट्रॉनिक्स कारोबार को बढ़ावा दिया जा सके।

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सरकारी निर्देशों के अनुरूप परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों, उद्योगों और भारतीय रेलवे समेतविद्युत स्टेशनों के लिए बीएचईएल जनरेटिंग और ट्रांसमिशन उपकरण की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। इंजीनियरिंग प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाने के लिए ताकि बीएचईएल के बैनर तले सभी उत्पादों के लिए एकीकृत डिजाइन बने,एक इंजीनियरिंग समिति का गठन किया गया। सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाने में कंपनी के अग्रणी प्रयासो ने सभी सयंत्रों में एकीकृत प्रणालियों को तेजी से अपनाने में मदद की।बीएचईएल ने 400 केवी तक विद्युतट्रांसमिशन के लिए उच्च वोल्टेज उपकरण और वैश्विक रुझानों को ध्यान में रखते हुए जनरेशन उपस्करों की रेटिंग में वृद्धि की योजना बनाई थी।

बीएचईएल ने वैश्विक रुझानों को ध्यान में रखते हुए 400 केवी तक बिजली के संचरण के लिए उच्च वोल्टेज उपकरणों और उत्पादन उपकरणों की बढ़ी हुई रेटिंग की भी योजना बनाई थी। इसके बाद 1974-75 में जर्मनी के क्राफ्टवर्के यूनियन (केडब्ल्यूयू) के साथ सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जिसके तहत डिजाइन और निर्माण के मॉड्यूलर सिद्धांतों के आधार पर 210 मेगावाट से अधिक और 1,000 मेगावाट तक के थर्मल जनरेटिंग सेटों के लिए डिजाइन और प्रौद्योगिकी तैयार की गई।

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1977 में हैदराबाद में प्रयोगशालाओं की एक श्रृंखला के साथ कॉर्पोरेट अनुसंधान और विकास प्रभाग की स्थापना और अनुसंधान एवं विकास कार्य के लिए विशेष रूप से भर्ती किए गए वैज्ञानिकों और उच्च योग्य कर्मचारियों के साथ, स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप डिजाइनों में लगातार सुधार किए गए ताकि सभी प्रमुख उपकरणों का संतोषजनक संचालन संभव हो सके। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की पूर्ति के लिए विशेष प्रभाग भी स्थापित किए गए।

इन प्रयासों ने बीएचईएल को देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए कठिन और अति आवश्यक जरूरतों को पूरा करने में भी सक्षम बनाया। बीएचईएल परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आवश्यक भाप जनरेटर और अन्य उपकरणों का अपने दम पर विकास कर इस स्थिति तक पहुंचा और इन परियोजनाओं को नियोजित रूप से जारी रखने में मदद की।संकट की स्थिति में देश की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के लिए बढ़ती कंपनी का एक और उदाहरण 70 के दशक में ऑयल शॉक के समय था।

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ओएनजीसी के खोज कार्यक्रमों के लिए ऑन-शोर तेल रिग सहित तेल क्षेत्र के उपकरणों के उत्पादन के लिए कंपनी ने शीघ्र ही प्रबंध किए। 70 के दशक के अंत तक, प्रणाली अवधारणा गहरी हो गई थीं और बीएचईएल ऊर्जा, उद्योग और परिवहन खंडों के सभी ग्राहकों को अवधारणा से कमीशनिंग तक सम्पूर्ण सेवाएं प्रदान कर रहा था। पहले दो दशकों के दौरान, कंपनी ने तकनीशियनों और इंजीनियरों की आवश्यकताओं को पूरा करने में पर्याप्त निवेश किया था। 1970 के दशक तक, यह जान लिया गया कि संगठन के भीतर प्रबंधकीय प्रतिभा और भविष्य के लीडरों को विकसित करना अनिवार्य था। कॉर्पोरेट योजना ने इस आवश्यकता को हल करने में मदद की। बीएचईएल का प्रतिभा पूल भारत में कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्यमों मेंउभरते लीडरों के लिए भी एक स्रोत था।

अस्सी का दशक: बाजार अनुकूलन और प्रौद्योगिकी प्रगति का युग

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80 का दशक कंपनी के लिए बाजार अनुकूलन का एक चरण था और देश में विद्युत परियोजनाओं के लिए संसाधनों की कमी के कारण कंपनी को विदेशी प्रतिस्पर्धा में वृद्धि का सामना करना पड़ा। बीएचईएल के प्रचालन को व्यापार क्षेत्रों और प्रदेश-क्षेत्रों के आसपास पुनर्गठित किया गया था।

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उत्पाद प्रबंधक की अवधारणा चहु-मुखी विकास को बनाए रखने हेतु बढ़े हुए उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी को ध्यान में रख कर एक एकीकृत दृष्टिकोण के लिए प्रस्तुत की गई थी। इन-हाउस विकसित प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण पर बल दिया गया और गैस टरबाइन, लोकोमोटिव और तरल पदार्थ बेड कंबस्शन बॉयलर जैसे नए संभावित विकास क्षेत्रों में प्रवेश किया गया था।

अस्सी के दशक के मध्य तक जगदीशपुर में सिरेमिक इंसुल्युलेटर के निर्माण के लिए, रानीपेट में बॉयलर ओग्ज़लरी, गोइंदवाल में औद्योगिक वाल्व और रुद्रपुर में गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोत(NCES) उत्पाद जैसे अगली पीढ़ी के चार छोटे सयंत्रों को विनिर्माण इकाइयों में जोड़ा गया। मैसूर पोर्सिलेंस लिमिटेड (एमपीएल), बैंगलोर को इंसूलेटर और सिरेमिक लाइनर के निर्माण के लिए, इलेक्ट्रो पोर्सिलेन्स डिवीजन बनाने हेतु बीएचईएल के साथ विलय कर दिया गया था।

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प्रौद्योगिकी समावेश और अनुकूलन पर निरंतर बल देने के परिणामस्वरूप 210 मेगावाट थर्मल सेटों का तेजी से स्थिरीकरण हुआ, जिसे 1977 में भारतीय विद्युत प्रणालियों में पहली बार पेश किया गया था। 80 के दशक के मध्य तक, बीएचईएल ने 500 मेगावाट थर्मल पावर उपकरण की आपूर्ति शुरू कर दी थी और देश में एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन के रूप में खुद को स्थापित कर लिया था, जो पर्यावरण द्वारा उत्पन्न किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम था।

ऑपरेशन में विद्युत संयंत्रों पर नियमित प्रतिक्रिया के माध्यम से, मुख्य रूप से विभिन्न पणधारकों, विशेष रूप से ग्राहकों से सीखने की प्रक्रिया के माध्यम से यह संभव हो सका था। कंपनी ने जटिल से जटिल उपकरण के उत्पादन और आपूर्ति करने के लिए इंजीनियरिंग और विनिर्माण के क्षेत्रों में योग्यता विकसित की। इसने वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए बौद्धिक संपदा और प्रौद्योगिकी के स्वामित्व के महत्व को पहचाना।

नब्बे का दशक: पुनरुत्थान, विचार-विमर्श और नवप्रवर्तन का युग

Image of Nineties: Era of Resurgence, Ideation and Innovation

आर्थिक उदारीकरण और डब्ल्यूटीओ राज में व्यापार बाधाओं को कम करने के कारण कारोबारी माहौल में एक बड़ा बदलाव आया था। बीएचईएल को सभी पणधारकों की बढ़ती उम्मीदों को पूरा करना पड़ा। आर्थिक और व्यापार नीतियों में आकस्मिक पूर्ण परिवर्तन ने कंपनी द्वारा शुरू की गई रणनीतिक पहलों की अत्यधिक संभावनाओं को लील लिया। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी उन्नयन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि, प्रमुख उत्पादन इनपुट के निर्माण के लिए घरेलू क्षमता विकसित करना, निर्यात पर जोर देना, और नए उत्पाद / व्यापार क्षेत्रों की शुरूआत करना था। बीएचईएल की 14 वीं विनिर्माण इकाई, इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिवीजन की स्थापना बैंगलोर में हुई थी।

इनमें से सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी उन्नयन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि, प्रमुख उत्पादन इनपुट के निर्माण के लिए घरेलू क्षमता विकसित करना, निर्यात पर जोर देना, और नए उत्पाद / व्यापार क्षेत्रों की शुरूआत करना था। बीएचईएल की 14 वीं विनिर्माण इकाई, इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिवीजन की स्थापना बैंगलोर में हुई थी।

90 के कॉर्पोरेट प्लान ने कंपनी को विपणन और परियोजना निष्पादन क्षमताओं के पुनर्गठन करने और मजबूती से चुनौतियों का जवाब देने में सक्षम बनाया। बीएचईएल देश में अपने प्रकार का एकमात्र संगठन बन गया, जिसने पारदर्शी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली (आईसीबी) प्रक्रियाओं के माध्यम से घरेलू बाजार में सभी विद्युत संयंत्रों के आदेशों को हासिल करके अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता का प्रदर्शन किया। कंपनी ने ग्राहको की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चुनिंदा वित्त व्यवस्था सेवाओं का भी चयन किया।

रक्षा, दूरसंचार, बड़े गैस टरबाइन और 3-फेस एसी लोकोमोटिव के रूप में नए विकास क्षेत्रों की पहचान की गई थी। बीएचईएल की प्रतिस्पर्धी तीक्ष्णता को बेहतर बनाने के लिए आर एंड डी प्रयासों पर हमेशा ज़ोर रहा है। उच्च क्षमता को देखते हुए, बीएचईएल ने पवन ऊर्जा, एचवीडीसी पावर ट्रांसमिशन और सुपरकंडक्टिविटी की सीमांत तकनीक के क्षेत्र में प्रवेश किया। परिवहन क्षेत्र में, 40 सीटों वाली बैटरी संचालित यात्री बस विकसित की गई थी और उयका फील्ड परीक्षणों किया जा रहा था ।

बीएचईएल आईएसओ 9000 और आईएसओ 14000 की मान्यता प्राप्त करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की पहली कंपनी बन गई। कंपनी समय-समय पर Y2K तत्परता को प्राप्त करने के लिए एक विस्तृत रणनीति को लागू करने के बाद एक Y2K -Ready उद्यम के रूप में अगली शताब्दी में प्रवेश करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई।

आज: विद्युत और उद्योग क्षेत्रों में राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने में बीएचईएल की भूमिका

पिछले कुछ समय में, अनेक अप्रत्याशित घटनाओं, भूराजनैतिक परिस्थितियों तथा उनके परिणामस्वरूप आपूर्ति शृंखला में बाधाओं ने माननीय प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के आह्वान को और अधिक बल प्रदान किया है। प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुरूप, बीएचईएल ने राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वदेशी डिज़ाइन, विकास और विनिर्माण के सम्पूर्ण तंत्र का विस्तार करते हुए राष्ट्र को विद्युत और उद्योग के क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के प्रति स्वयं को पुनःसमर्पित कर दिया है।

कंपनी ने अपने प्रचालन को ‘राजस्व केंद्रित’ से ‘परियोजना केंद्रित’ की ओर ढ़ाला है। व्यवसाय विविधिकरण तथा विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन जैसे पहलों के परिणामस्वरूप, अब तक की सर्वाधिक प्रोजेक्ट पूर्णता, न्यूनतम अधूरे कार्य तथा परमाणु ऊर्जा और रक्षा व्यवसायों में अब तक की सर्वाधिक ऑर्डर प्राप्ति जैसे सुखद परिणाम आने शुरू हो गए हैं। पारंपरिक व्यापार क्षेत्रों में अपने मार्केट शेयर को बढ़ाकर तथा नए व्यापार क्षेत्रों में पाँव जमाने के लिए विविधिकरण प्रयासों को तेज करते हुए बीएचईएल ऑर्डर बुक पाइपलाइन बनाने के प्रति प्रयासरत है। विद्युत उपस्करों के अपने मौजूदा मुख्य व्यवसाय के अलावा, बीएचईएल रक्षा, एयरोस्पेस, शहरी गतिशीलता (अर्बन मोबिलिटी) और रेल परिवहन जैसे नए क्षेत्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षमताओं का निर्माण कर रहा है। भविष्य में, कोयला गैसीकरण के अलावा हाइड्रोजन वैल्यू चेन और कार्बन कैप्चर जैसी उभरती हुई ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर आधारित व्यापार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए कंपनी खुद को समुचित रूप से तैयार कर रही है। कोयला गैसीकरण के लिए बीएचईएल पहले ही उच्च राख वाले भारतीय कोयले का उपयोग कर स्वदेशी तकनीक विकसित कर चुका है।